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शे'र
मिरी आरज़ू के चराग़ पर कोई तब्सिरा भी करे तो क्याकभी जल उठा सर-ए-शाम से कभी बुझ गया सर-ए-शाम से
अज़ीज़ वारसी देहलवी
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मिरी आरज़ू के चराग़ पर कोई तब्सिरा भी करे तो क्याकभी जल उठा सर-ए-शाम से कभी बुझ गया सर-ए-शाम से
अज़ीज़ वारसी देहलवी
फ़ारसी कलाम
वश्शमस चे बाशद सिफ़त-ए-वज्ह-ए-शरीफ़शवल्लैल चे बाशद सिफ़त-ए-मू-ए-मोहम्मद
अमीर हसन अला सिज्ज़ी
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शे'र
अ’ज़्म-ओ--इस्तिक़लाल है शर्त-ए-मुक़द्दम इशक मेंकोई जादः क्यूँ न हो इंसान उस पर जम रहे
कामिल शत्तारी
ना'त-ओ-मनक़बत
किस कैफ़ में डूबे हैं दीवाने मोहम्मद केपी पी के जिए जाते हैं मस्ताने मोहम्मद के
अमीर बख़्श साबरी
ना'त-ओ-मनक़बत
हाफ़िज़ हबीब अ'ली शाह
शे'र
मुर्शिद मक्का तालिब हाजी का’बा इ’श्क़ बड़ाया हूविच हुज़ूर सदा हर वेले करिए हज सवाया हू
सुल्तान बाहू
ना'त-ओ-मनक़बत
मतवाले मोहम्मद के कहते हैं सर-ए-महफ़िलदीदार-ए-ख़ुदा होता दीदार-ए-मोहम्मद में
अमीर बख़्श साबरी
ना'त-ओ-मनक़बत
यहाँ मोहम्मद वहाँ मोहम्मद इधर मोहम्मद उधर मोहम्मदजहाँ भी देखा निगाह-ए-दिल ने वहीं पे आए नज़र मोहम्मद